Chandrashekhar Azad In Hindi - चंद्रशेखर आजाद जयंती 23 जुलाई | Chandrashekhar Azad Ke Bare Mein

Chandrashekhar Azad In Hindi - चंद्रशेखर आजाद Chandrasekhar Azad भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक ऐसे महानायक Great Actor थे जो उस दौर में भी आजाद रहे जब हिन्दुस्तान अंग्रेजों का गुलाम था। लाखों प्रयासों के बावजूद भी चंद्रशेखर आजाद को अंग्रेज सरकार कभी भी गिरफ्तार नहीं कर पाई ।

        Chandra shekhar Azad आजादी की वह मिसाल है जो करोड़ों हिंदुस्तानियों में देशभक्ति की चिंगारी जगाते रहेंगे। बचपन में चंद्रशेखर आजाद Chandrasekhar Azad महात्मा गांधी की विचारधारा से काफी प्रभावित हुए।

 Chandrashekhar Azad Ke Bare Mein - Chandrashekhar Azad In Hindi Essay

चंद्रशेखर आजाद के बारे में सम्पूर्ण जानकारी - Chandrashekhar Azad Important Fact
चंद्रशेखर आजाद के बारे में सम्पूर्ण जानकारी 



       छोटी सी उम्र में उन्होंने अपने देश को अंग्रेजों के चंगुल से छुड़ाने की ठान ली थी लेकिन उनके Life में कई ऐसी घटनाएं घटी जिन्होंने Chandra sekhar Azad की विचारधारा को बदल कर रख दिया उन्होंने देश को Freedom करने का एक अलग रास्ता चुना जिसने देश के लाखों करोड़ों युवाओं को आजादी की लड़ाई Freedom Fight में कूदने के लिए प्रेरित Inspired किया।


◆चंद्रशेखर आजाद का प्रारम्भिक जीवन


 चंद्रशेखर आजाद Chandra sekhar Azad का जन्म उत्तर भारत के जिला अलीराजपुर के भाबरा नामक गांव में 23 जुलाई 1906 को हुआ। इनके पिता का नाम पंडित सीताराम तिवारी Seeta ram Tiwari व माता का नाम जगरानी देवी Jagrani Devi था। 

           बचपन में चंद्रशेखर आजाद को चंद्रशेखर तिवारी Chandrashekhar Tiwari बुलाते थे । यहीं भावना नगर मैं उनका बचपन बीता, चंद्रशेखर आजाद का जन्म उस Time में हुआ जब भारत देश को Freedom करने की मांग देश के प्रत्येक कोने में हो रही थी।


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           हर कोई अपने अपने तरीके से देश की आजादी के Dream's देख रहा था तो इस समय में बालक चंद्रशेखर तिवारी पीछे कैसे रहते, Chandrasekhar Tiwari उस समय किशोरावस्था Adolcence में थे जब भारत देश में गांधी युग Gandhi Yug की शुरुआत हुई।


        काफी लोग गांधीजी की अहिंसा वादी नीति Non Violence Policy से प्रभावित हुए वह गांधी जी के नेतृत्व में आजादी की लड़ाई में कूद गए चंद्रशेखर तिवारी Chandrashekhar Azad भी उनमें से एक थे जो अपने School Time में ही देश से अंग्रेजों को भगाने के सपने देख रहे थे किशोरावस्था में Chandrasekhar Tiwari महात्मा गांधी की सोच से काफी प्रभावित हुए।



◆चंद्रशेखर तिवारी कैसे बने चंद्रशेखर आजाद - Chandrashekhar Azad In Hind

बात उस समय की है जब 13 April 1919 में अमृतसर के जलियांवाला बाग Jaliyawala Bagh में हत्याकांड हुआ , इस हत्याकांड में अंग्रेज अफसर जनरल डायर ने बाग में सभा कर रहे निहत्थे लोगों पर Firing करवा दी, जिसमें हजारों मासूम लोगों की जान चली ओर इसमे मारे गए अधिकतर लोगों में कई महिलाएं बच्चे व बुजुर्ग शामिल थे। 


          इस घटना ने देश के कई युवाओं के मन में एक चिंगारी लगा दी जिनमें चंद्रशेखर आजाद भी एक थे। वह भी मात्र 15- 16 साल की उम्र में आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। 1 अगस्त 1921 को गांधी जी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया जिसमें तमाम स्कूली छात्रों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। चंद्रशेखर तिवारी भी अपने स्कूली छात्रों के साथ इस आंदोलन movement में भाग ले रहे थे।


     चंद्रशेखर आजाद को Arrested कर लिया गया इस समय वे केवल 15 साल के बच्चे थे। जब उनसे उनका नाम, पिता का नाम व पता पूछा गया तो Chandrasekhar Tiwari ने Answer दिया " नाम आजाद पिता का नाम स्वतंत्रता व पता जेल " इस जवाब को सुनकर अंग्रेज अधिकारी आग बबूला हो गया वह चंद्रशेखर तिवारी को 15 कोड़ो(बेंत) की सजा सुनाई।


    चन्द्रशेखर आजाद की पीठ पर जब-जब कोड़े पड़ते वह भारत माता की जय के नारे लगाते, यह वह  घटना थी जब चंद्रशेखर तिवारी Chandrashekhar Azad के नाम से विख्यात popular हुए।


◆विचारधारा में परिवर्तन - Chandrashekhar Azad Ke Bare Mein


 प्रारंभ में चंद्रशेखर आजाद गांधी जी की विचारधारा के अनुरूप आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे। 1921 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में चंद्रशेखर आजाद ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, लेकिन सन 1922 में चोरी - चोरा नामक घटना घटी जिसमें क्रांतिकारियों ने एक पुलिस थाने को आग लगा दी जिसमें कुछ पुलिसकर्मियों की जान चली गई थी । 


         इस घटना को देखकर गांधी जी  ने अपना असहयोग आंदोलन 11 फरवरी 1922 को बिना किसी से पूछे वापस ले लिया। देश के कई युवा जिनमें चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह भी शामिल थे को गहरा आघात पहुंचा और उन्होंने गांधीजी की अहिंसा वादी नीति को छोड़कर एक अलग रास्ता चुना।  

                    
        1924 में शचिंद्र सान्याल ने  हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन  का गठन किया जिसमें राम प्रसाद बिस्मिल चंद्रशेखर आजाद भगत सिंह व कई युवा क्रांतिकारी शामिल थे।  संगठन के लिए पैसों की आपूर्ति करने के लिए अंग्रेजी सरकारी खजाने को लूट दिया जाता था।

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◆काकोरी कांड  -

9 अगस्त 1925 को एक ऐसी घटना घटी जिसके कारण कई क्रांतिकारी युवाओं को अंग्रेज सरकार ने फांसी व आजीवन कारावास की सजा दी इस घटना को काकोरी कांड कहते हैं ।

          काकोरी कांड में संगठन के युवा क्रांतिकारी एक सरकारी खजाने को लूटने जा रहे थे जिस के आरोप में संगठन के कई लोगों को गिरफ्तार किया गया। चंद्रशेखर आजाद को हमेशा की तरह अंग्रेज सरकार पकड़ने में असफल रही लेकिन रामप्रसाद बिस्मिल्लाह, अशफाक उल्ला खां , तथा रोशन सिंह को 11 दिसंबर 1927 को फांसी दे दी गई।


       कई अन्य क्रांतिकारीयों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी। संगठन इस समय बिखरने की कगार पर था लेकिन चंद्रशेखर आजाद व भगत सिंह ने संगठन को बिखरने नहीं दिया। 


       1928 को भगत सिंह ने हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन का नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना की।


◆सांडर्स Saunders की हत्या लाला लाजपत राय की मौत का बदला-


 3 फरवरी 1928 को साइमन कमीशन भारत आया जिसके विरोध में लाला लाजपत राय ने 30 अक्टूबर 1928 को लाहौर में प्रदर्शन किया, पुलिस ने उनके सर पर लाठियों से प्रहार किया जिससे उनकी मौत हो गई ।

       इससे Chandrasekhar Azad व Bhagat Singh को गहरा आघात पहुंचा । भगत सिंह चंद्रशेखर आजाद ने राजगुरु व सुखदेव के साथ मिलकर लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने का निश्चय किया। 17 दिसंबर 1928 को जैसे ही सांडर्स ऑफिस से साइकिल से निकला राजगुरु ने पहली गोली सांडर्स की सिर पर मारी और फिर भगत सिंह ने चार - पांच गोलियां सांडर्स के शरीर में दाग दी।


         भगत सिंह व  राजगुरु को भागने में मदद चंद्रशेखर आजाद ने की ,सांडर्स की हत्या की बात उन्होंने लाहौर में जगह जगह पर पर्चे चिपकाकर  लिखा लाला लाजपत राय की मौत का बदला ले लिया गया है,जिससे लाहौर की जनता में काफी उत्साह नजर आया तथा लोगों ने इसे सही ठहराया।



◆भगत सिंह की गिरफ्तारी -


 8 अप्रैल 1929 को  पब्लिक सेफ्टी बिल पास होने की विरोध में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली में सेंट्रल असेंबली में बम फेंका, जिसका Aim किसी को मारना नहीं बल्कि बहरी British Government तक अपनी बात पहुंचाना था। 


        Chandrasekhar Azad ने भगत सिंह को ऐसा करने से मना भी किया क्योंकि वह जानते थे कि Bhagat Singh को Arrested किया जाएगा और वह भगत सिंह को खोना नहीं चाहते थे। इसके बाद Bhagat singh व बटुकेश्वर दत्त ने स्वयं को arrest करवा लिया उन्हें जेल की सजा हुई , Bhagat Singh जेल के अंदर से ही देश के लोगों तक अपने विचार पहुंचाते रहे।


          24 मार्च 1931 को भगत सिंह राजगुरु व सुखदेव को सांडर्स केस में हत्या के आरोप में फांसी की सजा सुना दी गई। चंद्रशेखर आजाद ने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को जेल से बाहर निकालने की कई कोशिशें की लेकिन उन्हें कामयाबी हासिल नहीं हुई। 


       चंद्रशेखर आजाद ने दुर्गा भाभी को गांधीजी के पास भेजा कि वह  इरविन समझौते के दौरान Bhagat Singh, Rajguru व Sukhadev की फांसी रोकने की अपील करें लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला।



◆चंद्रशेखर आजाद की कुर्बानी -


27 फरवरी 1931 को चंद्र शेखर आजाद अल्फ्रेड पार्क में बैठे थे  तभी अचानक पुलिस को कहीं से खबर मिली कि चंद्रशेखर आजाद अल्फ्रेड पार्क में बैठे हुए हैं। चंद्रशेखर आजाद इतने शातिर थे कि उन्होंने पुलिसकर्मियों को कई बार चकमा दिया था लेकिन उस दिन पुलिस ने अल्फ्रेड पार्क को चारों ओर से घेर लिया तथा गोलीबारी शुरू कर दी, 

              दोनों ओर से गोलीबारी हुई चंद्रशेखर आजाद अपनी अंतिम सांस तक लड़ते रहे ,अंत में उनके पास एक  गोली बची थी  उन्होंने खुद से वादा किया था कि वह कभी भी अंग्रेज सरकार की गिरप्त में नहीं आयेंगे। 


          Chandrashekhar Azad ने अपने सर में वह अंतिम गोली दाग दी और भारतीय क्रांति के महानायक चंद्रशेखर आजाद हमेशा के लिए Independent हो गए, British Government इतनी कायर थी कि उन्होंने चंद्रशेखर आजाद की परिजनों को बिना बताए Chandrasekhar Azad का मृत शरीर जला दिया।


         British Government जानती थी कि लोगों में काफी आक्रोश होगा। लेकिन शायद वह यह भूल गए थे कि चंद्रशेखर आजाद ने लाखों युवाओं के दिलों में आजादी की चिंगारी जला चुके थे। चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु के अगले दिन अल्फ्रेड पार्क में कई लोगों की भीड़ लगी ।

     लोगों ने उस पेड़ पर झण्डियां  बांधनी  शुरू की जिस पेड़ के नीचे चंद्रशेखर आजाद ने अंतिम सांस ली थी और महान क्रांतिकारी Great revolutionary व युवाओं की प्रेरणा चंद्रशेखर आजाद हमेशा के लिये अमर हो गये।



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