परमार वंश Parmar Vansh – History Of Uttarakhand, गढ़वाल का परमार (पंवार) वंश

 परमार वंश (पंवार वंश)

गढ़वाल का परमार (पंवार) वंश

गढ़वाल में परमार वंश की स्थापना 888 ई० में कनकपाल ने की

कनकपाल का उत्तरखंड आगमन- History Of Uttarakhand

कनकपाल मूलतः कहाँ का था या किस क्षेत्र से आया था इतिहासकारों ने इस पर अपनी मुख्यतः दो राय दी है-
1.गुर्जर प्रदेश- कुछ इतिहासकारों के अनुसार कनकपाल गुर्जर क्षेत्र (मेवाड़ गुजरात व महाराष्ट्र) से आया इसका उल्लेख चाँदपुरगढ़ से प्राप्त एक शिलालेख में मिलता है और व दूसरा प्रमाण गणेश भगवान की मूर्ति है जिसमें गणेश भगवान नकी मूर्ति दायें मुड़ी हुई है


2.धार क्षेत्र-कुछ इतिहासकारों (हरिकृष्ण रतूड़ी, पातीराम, एटकिंसन) के अनुसार कनकपाल धार प्रदेश से आया था लेकिन इसके कोई ठोस प्रमाण नहीं मिले

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पंवार वंश का वास्तविक संस्थापक-

पंवार वंश के संस्थापक में इतिहासकारों के दो मत है कुछ इतिहासकार कनकपाल को जबकि कुछ इतिहासकार अजयपाल को पवांर वंश का संस्थापक मानते है-

अजयपाल के सम्बंध में प्रमाण– मानोदया(1600 भरत कवि),   सभासर(1828 सुदर्शन शाह) ग्रन्थों में परमार वंश के राजाओं का उल्लेख है जिसमें प्रथम शासक अजयपाल को बताया गया है।

कनकपाल के सम्बंध में प्रमाण –
  • चाँदपुरगढ़ में कोनपुर गढ़ स्थित है जिसे कनकपाल का गढ़ माना जाता है।
नीचे पंवार वंश के कुछ राजाओं के नाम व उनके होने बीके प्रमाण दिये गए हैं जो कि अजयपाल से पहले के हैं इससे सिद्ध होता है कि अजयपाल से पहले ही पंवार वंश की स्थापना हो चुकी थी और यह कनकपाल ने की होगी-
  • लक्ष्मणदेव(28वां) राजा की ताम्र मुद्रा(टिहरी) से प्राप्त हुई।
  • अनंतपाल(29वां राजा) का धार शिलालेख(धारशिल ग्राम , ऊखीमठ)।
  • जगतपाल(34 वां) का देवप्रयाग अभिलेख।
  • कनकपाल के पंवार वंश के संस्थापक होने के प्रमाण अधिक विश्वसनीय थे।
  • कनकपाल गुर्जर क्षेत्र का शासक था जो कि 887 ई० में तीर्थाटन पर आया था।
  • कनकपाल ने चांदपुरगढ़(चमोली) के शासक भानुप्रताप की पुत्री से विवाह किया ।

888ई० से 1949 तक पंवार वंश के कुल 60 राजा हुए

पंवार वंश के 60 राजाओं की मुख्यतः 4 सूचियां हैं जो कि अलग-अलग इतिहासकरों द्वारा दी गयी इनमें बैकेट की सूचि(1849) सबसे विश्वसनीय है-
1.हार्डिक सूचि(1796)
2.बैकेट की सूचि(1849)
3.विलियम की सूचि
4.एटकिंसन सूचि

क्र.स
परमार
वंश के राजा
1
कनकपल
2
श्यामपाल
3
पदूपाल
4
अभिगत
पाल
5
संगत
पाल
6
रतन
पाल
7
सालीपाल
8
विधि
पाल
9
मदन
पाल प्रथम
10
भक्ति
पाल
11
जयचंद्र
पाल
12
प्रथ्वी
पाल
13
मदन
पाल द्वितीय
14
अगस्ति
पाल
15
सुरती
पाल
16
जयंत
पाल
17
अनंत
पाल प्रथम
18
आनंद
पाल प्रथम
19
विभोग
पाल
20
सरजन
पाल
21
विक्रम
पाल
22
विचित्र
पाल
23
हंस
पाल
24
सोन
पाल
25
कान्ति
पाल
26
कामदेव
पाल
27
सुलखन
पाल
28
लखन
देव
29
अनंत
पाल द्वितीय
30
पूर्व
देव
31
अभय
देव
32
जयराम
देव
33
असल
देव
34
जगत
पाल
35
जीत
पाल
36
आनंद
पाल
37
अजयपाल
38
कल्याण
पाल
39
सुंदर
पाल
40
हंसदेव
पाल
41
विजय
पाल
42
सहज
पाल
43
बलभद्र
शाह
44
मान
शाह
45
श्याम
शाह
46
महिमत
शाह
47
प्रथ्वी
शाह
48
मेदनी
शाह
49
फतेह
शाह
50
उपेंद्र
शाह
51
प्रदीप
शाह
52
ललिपत
शाह
53
जयकर्त
शाह
54
प्रधूमन
शाह
55
सुदर्शन
शाह
56
भावनीशह
57
प्रताप
शाह
58
किर्ति
शाह
59
नरेंद्र
शाह
60
मानवेंद्र
शाह
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गढ़वाल का परमार (पंवार) वंश

गढ़वाल के परमार(पंवार) वंश के प्रमुख राजा

सोनपाल(24वें राजा) –

  • सोनपाल को सुवर्णपाल के नाम से ही जाना जाता है
  • इसने खस राजाओं को हराया
  • इसने भिलंग घाटी में अपनी राजधानी बनायी
  • इसके पुत्रों ने राजधानी को दो भागों में बांटा-
1.भिलंग घाटी
2.चंदपुरगढ़

भिलंग घाटी के शासक सोनवंशी कहलाये

लखण देव(लसणदेव)(1310-33)-(28वां शासक)

  • लखण देव अपनी मुद्रा(ताम्र मुद्रा) चलाने वाला प्रथम पवांर शासक था
  • इसे पंवार वंश का प्रथम स्वतंत्रत शासक कहा जाता है
  • इसकी राजधानी भिलंग घाटी थी

अनंतपाल द्वितीय(1333-1345)-(29वां शासक)

मन्दाकिनी नदी घाटी के पास धारशिला गाँव(चमोली) से इसका शिलालेख प्राप्त हुआ

जगत पाल(34 वन शासक)(1444-1460)-

देवप्रयाग के रघुनाथ मंदिर में इसका ताम्रपत्र प्राप्त हुआ
इस ताम्र पत्र में इसने खुद को रजवार कहा है

गढ़वाल के 52 गढ़-

क्र.स
गढ़वाल के 52 गढ़
संबन्धित जातियाँ
1
चाँदपुर गढ़
सूर्यवंशी
2
नागपुर गढ़
नाग जाति
3
कुईली गढ़
सजवाण
4
सिल गढ़
सजवाण
5
भरपूर गढ़
सजवाण
6
कुंजड़ी गढ़
सजवाण
7
बांगर गढ़
राणा
8
सांकरी गढ़
राणा
9
रामी गढ़
राणा
10
मुंगरा गढ़
रावत जाति
11
बिराल्ट गढ़
रावत
12
कोल्लिगढ़
बछवाण
13
रावड़गढ़
रवाड़ी
14
फाल्याण गढ़
फाल्याण जाति
15
रेका गढ़
रमोला जाति
16
मोल्या गढ़
रमोला
17
उप्पू गढ़
चोहान गढ़
18
इंडिया गढ़
इंडिया जाति
19
बाग गढ़
बगुड़ी जाति
20
गाढकोट गढ़
बगडवाल
21
चोंड़ा गढ़
चोंडाल
22
तोप गढ़
तोपाल
23
राणी गढ़
तोपाल
24
श्रीगुरु गढ़
परिहार
25
बधाण गढ़
बधाणी
26
लोहबाग गढ़
नेगी
27
रतन
गढ़
28
चोंदकोट गढ़
चोंदकोट जाति
29
नयाल गढ़
नयाल जाति
30
आजमीर गढ़
पयाल जाति
31
गडताग गढ़
भोटिया जाति
32
कुंडारा गढ़
कुंडारी
33
लंगूर गढ़
लंगूर पट्टी
34
नाला गढ़
देहरादून
35
दशोली गढ़
दशोली
36
धोना गढ़
धोन्याल
37
बनगढ़
बनगढ़
38
भरदार गढ़
भरदार
39
काँड़ा गढ़
रावत
40
सावली गढ़
सावली
41
गुजडू जाति
गुजडू
42
जोट जाति
जोनपुर
43
देवल गढ़
देवलगढ़
44
लोद गढ़
45
जोंलपुर गढ़
46
चंपा गढ़
47
डोडराकवंरा गढ़
48
भवना गढ़
49
लोदन गढ़
50
बदलपुर गढ़
51
संगेला गढ़
52
एरासू गढ़
श्रीनगर के पास
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अजयपाल(1490-1519)(37वें शासक)-

  • अजयपाल को पंवार वंश का सबसे शक्तिशाली शासक माना जाता है। 
  • इसने राजधानी चंदपुरगढ़ से देवलगढ़(1506) व उसके पश्चात श्रीनगर(1517) स्थानांतरित किया। 
  • अजयपाल
    ने देवलगढ़ में राजभवन बनाकर वहां अपनी कुलदेवी राजराजेश्वरी की स्थापना की
    व भैरव मंदिर, सत्यनाथ मंदिर, गौरजा मंदिर व लक्ष्मी नारायण मंदिर का
    जीर्णोद्धार कराया। 
  • “सारोला ब्राह्मण प्रथा” अजयपाल ने शुरू की। 
  • “धुली पाथा पैमाना” अजयपाल ने शुरू कराया। 
  • कवि भरत ने अपनी पुस्तक “मानोदया” काब्य में इसकी तुलना कृष्ण, कुबेर, इंद्र, युधिष्ठिर व भीम से की है। 
  • अजयपाल की तुलना सम्राट अशोक से भी की जाती है। 
  • अंत समय मे गोरखनाथ पंथ अपनाया। 
सहजपाल(42 वां शासक) –
  1. देवप्रयाग रघुनाथ मंदिर से 5 अभिलेख प्राप्त हुए।
  2. गढ़वाल राजा वंशावली में इसे वीर गुणज सुखद प्रज्या कहा गया।
  3. मानोदया काव्य में इसे राजनीति चतुर तथा संग्राम में शत्रु को संताप देने वाला कहा गया.
  4. बलभद्र शाह(43वें राजा)-
  5. बलभद्र शाह को रामशाह, बलराम शाह व बहादुर शाह भी कहा गया है।
  6. बलभद्र शाह शाह की उपाधि धारण करने वाला पहला शासक था।
  7. बलभद्र शाह को शाह की उपाधि लोदी वंश के शासक बहलोल लोदी ने दी।
  8. कवि देवराज ने बलभद्र शाह की बहादुरता व युद्ध शैली के कारण इसकी तुलना”भीमसेन समोबली से की.
  9. बलभद्र शाह व चंद शासक रुद्र चंद के बीच बाधणगढ़ युद्ध व ग्वालदम का युद्ध हुआ।
  10. बलभद्र शाह की ने सुखल देव(कत्युरी शासक) की सहायता लेकर रुद्र चंद को पराजित किया।

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मानशाह(44वां शासक)-

  • बहुगुणा वंशावली में मानशाह को बद्रीशावतारेण की उपाधि दी गयी है।
  • मानशाह के राजकवि भरत कवि थे जिन्होंने मानोदया काव्य की रचना की।
  • अकबरनामा
    में ज्योतिकराय का वर्णन तीन बार आया हुआ है जिसे टोडरमल का मित्र बताया
    गया है बहुगुणा वंशावली के अनुसार ज्योतिकराय ही भरत कवि थे।
  • जहांगीर नामा में भी ज्योतिकराय कवि का उल्लेख मिलता है।
  • प्रसिद्ध ब्रिटिश लेखक विलियम फिंच ने अपनी पुस्तक the early travel in india में मानशाह का विवरण किया है।
  • मानशाह ने जीतू बगड़वाल को  थोकदार नियुक्त किया था।
  • मानशाह
    के शासन काल मे चंद नरेश लक्ष्मीचंद ने गढ़वाल पर 8 बार आक्रमण किया जिनमे 7
    बार वह पराजित हुआ जबकि अंतिम युद्ध में उसे विजय हासिल हुई।
  • अंतिम
    युद्ध मे गढ़वाल सेना का नेतृत्व खतड़ सिंह ने किया व युद्घ में मारा गया
    माना जाता है कि इस विजय के उत्सव पर ही कुमाँऊ में खतड़वा त्योहार मनाया
    जाता है।

श्यामशाह(सामशाह)-

  • श्यामशाह मुगल बादशाह जहांगीर का समकालीन था।
  • जहांगीर
    नामा में श्यामशाह का विवरण मिलता है जहांगीर नामा के अनुसार जहांगीर ने
    श्यामशाह को एक घोड़ा व एक हाथी उपहार स्वरूप भेंट दिया गया।
  • श्यामशाह ने सामसाही बागान(श्रीनगर) का निर्माण कराया।

महिपत शाह(1631-1635)(46वां शासक)-

  • महिपत शाह को गर्भभंजन की उपाधि दी गयी है।
  • महिपत शाह मुगल बादशाह शाहजहां के समकालीन थे।
  • महिपत शाह ने श्रीनगर गढ़वाल में केशोरायमठ मंदिर का निर्माण करवाया।
  • महिपतशाह के समय तीन तिब्बती हमले हुए जिनका उन्होंने सफलतापूर्वक सामना किया।
  • रतूड़ी ने महीपत शाह का ‘दापा’ या ‘दाबा’ आक्रमण का उल्लेख किया है, जिनमें उन्हें अद्वितीय सफलता प्राप्त हुई।
  • महिपतशाह ने सिरमौर(हिमाचल प्रदेश) को भी जीता था।

महिपतशाह के तीन प्रमुख सेनापति थे-1.माधो सिंह भंडारी
2.लोदी रीखोला
3.वनवाड़ी दास

1.माधो सिंह भंडारी-

  • माधो सिंह भंडारी को गर्वभंजक कहा जाता है।
  • मलेथा की कूल का निर्माण माधो सिंह भंडारी ने ही किया।
  • माधो सिंह भंडारी का रजत अभिलेख रघुनाथ मंदिर देवप्रयाग से प्राप्त होता है।
  • सन
    1640 में प्राप्त ताम्रपत्र में उल्लेख है कि रानी कर्णावती ने चमोली जिले
    के हाट ग्राम में माधो  सिंह भंडारी को साक्षी बनाकर हटवाल नामक ब्राह्मण
    को भूमि दान की थी।

रानी कर्णावती –

  • रानी कर्णावती पंवार शासक महिपत शाह की पत्नी थी।
  • कर्णावती को” नाककाटी रानी” के नाम से जाना जाता है।
  • 1635
    में मुगल बादशाह(शाहजहां) के सेनापति नवजातखां  ने दून घाटी पर हमला किया।
    गढ़वाल की सरंक्षिका महारानी कर्णावती ने अपनी सूझबूझ व शाहस से मुगल
    सैनिको को पकड़कर उनके नाक काट दिये इस घटना के बाद उनका नाम नाककटी रानी
    प्रसिद्ध हो गया।

पृथ्वीपतिशाह(1635-1664)

  • पृथ्वीपति शाह मात्र 7 वर्ष की उम्र में राजगद्दी पर बैठा।
  • पृथ्वी पति शाह के पिता महिपत शाह व माता रानी कर्णावती थी।
  • पृथ्वीपति शाह को रानी कर्णावती  का सरक्षण प्राप्त था।
  • पृथ्वीपति शाह ने मुगल शहजादा दारा शिकोह के पुत्र सुलेमान शिकोह के पुत्र को श्रीनगर में सरक्षण दिया।
  • पृथ्वीपति शाह का पुत्र मेदनी शाह था  इसने अपने पिता पृथ्वी पति शाह के विरुद्ध षडयंत्र रचा।

फतेहपति शाह(1664-1710)(49 वां राजा)-

  • फतेहपति शाह मुगल बादशाह औरंगजेब के समकालीन था।
  • यह 12 वर्ष की उम्र में राजगद्दी पर बैठा व इसकी सरंक्षिका राजमाता कटोची देवी थी।
  • फतेहपति शाह को गढ़वाल का शिवाजी भी कहा जाता है।
  • इसके शासन काल को गढ़वाल का स्वर्ण युग कहा जाता है।
  • इसके शासन काल मे राज्य की सीमाओं का अधिक विस्तार हुआ।
  • अकबर की भांति फतेहपति शाह के दरबार मे नो रत्न थे.
  • सुरेशानन्द
    बड़थ्वाल , खेतराम धस्माणा , रुद्रीदत्त किमोठी , हरि दत्त नौटियाल ,
    वासवानन्द बहुगुणा , शशिधर डंगवाल , सहदेव चंदोला , कीर्तिराम कैंथोला और
    हरिदत्त थपलियाल।

फतेहपति शाह के शासन काल के बारे में निम्न पुस्तकों से जानकारी मिलती है-

कवि                     रचना
1. रतन कवि    –    फतेह प्रकाश/फतेह शाह
2.मातिराम      –    वृन्त कौमुदी/छंदसार पिंगल
3.रामचंद्र        –    फटेशाह यशोवर्मन
4.जटाशंकर    –    फटेशाह कर्ण ग्रंथ

  • फतेह प्रकाश(रतन कवि) में फतेहपति शाह को हिंदुओं का रक्षक, शील का सार व उदण्डों को दंड देने वाला कहा गया है।
  • छंदसार पिंगल में इसकी तुलना शिवाजी से की गयी है।
  • फतेहपति शाह ने सिक्ख गुरु रामराय को गुरुद्वारा बनाने के लिये  देहरादून में खुदबुड़ा ,राजपुर व चामासारी गांव दान में दिये।



फतेहपति शाह द्वारा लड़े गये युद्ध
सिरमौर का युद्ध- सिरमौर शासक(मेदनी प्रकाश) व फतेहपुर शाह के बीच
भंगाडी का युद्ध – फतेहपति शाह व सिक्ख गुरु गुरु गोविंद के बीच



उपेंद्र शाह
फतेहपति शाह का पुत्र
बग्वाल के दिन मृत्यु

दिलीप शाह-
उपेंद्र शाह का अनुज
सबसे कम समय(1,2 month) तक शासन करने वाला शासक

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