तुंगनाथ मंदिर | TungNath Temple in Uttarakhand - तुंगनाथ मन्दिर उत्तराखंड

आज इस पोस्ट में आपको TungNath Temple in Uttarakhand - तुंगनाथ मन्दिर उत्तराखंड के बारे मे सम्पूर्ण जानकारी मिलने वाली है, यदि आप तुंगनाथ मंदिर TungNath Temple में घूमने का प्लान बना रहें हैं तो तुंगनाथ मंदिर के बारे में ये जानकारी आपको जरूर होनी चाहिए, Tungnath Mandir के बारे में यह जानकारी आपकी यात्रा को और भी आनंदित कर देगी।
तुंगनाथ मंदिर | TungNath Temple in Uttarakhand - तुंगनाथ मन्दिर उत्तराखंड
तुंगनाथ मंदिर

Tungnath Temple in Uttarakhand - तुंगनाथ मन्दिर उत्तराखंड

तुंगनाथ मंदिर दुनिया का सबसे ऊँचा मंदिर है, जो उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में टोंगनाथ पर्वत पर स्थित है।
           तुंगनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक भव्य मंदिर है, जो कि समुद्र तल से लगभग 3,680 मीटर की ऊँचाई पर बना हुआ है। मान्यता अनुसार यह मंदिर 1000 वर्ष पुराना माना जाता है। टोंगनाथ अर्थात जिसे चोटियों का स्वामी भी कहा जाता है, इसमें अलकनंदा और मंदाकिनी नदी घाटियों का निर्माण होता है।

जनवरी फरवरी के महीनों में बर्फ की चादर ओढ़े इस स्थान की सुंदरता जुलाई अगस्त के महीनों में देखते ही बनती है। इन महीनों में यहाँ मीलों तक फैले मखमली घास के मैदान और उनमें खिले फूलों की सुंदरता देखने योग्य होती है।

तुंगनाथ मंदिर में भगवान शिव को पंचकेदार के रूप में पूजा जाता है, पंचकेदार के क्रम में तुंगनाथ मंदिर का दूसरा स्थान है।  यह मंदिर केदारनाथ और बद्रीनाथ मंदिर के लगभग बीच में स्थित है। यह गढ़वाल के सुन्दर इलाकों में से एक है।

तुंगनाथ मंदिर पंचकेदार के नाम से क्यों प्रचलित है

एक कहानी के मुताबिक कहा जाता है कि जब महाभारत युद्ध के समय कुरुक्षेत्र में हुए नरसंहार के दौरान पाण्डव अपनों को मारने के कारण व्याकुलता थे, इस व्यकुलता को दूर करने के लिए पांचों भाई पांडव महर्षि व्यास के पास गए ।

महर्षि वेद व्यास ने पांचों भाई पांडवों को सलाह दी कि, अपने भाइयों, गुरुओं ओर पुत्रों को मारने के बावजूद वे सभी  ब्रम्हत्या के प्रकोप में आ चुके हैं और उन्हें इस प्रकोप से केवल महादेव शिव ही बचा सकते हैं।

महर्षि वेद व्यास की सलाह लेने पर पांचों भाई पाण्डव  महादेव शिव के दर्शनों के लिए हिमालय पहुंचे परन्तु अपने कुल के नाश करने की वजह से महादेव शिव पांडवों से खफा थे और वे पांडवो से मिलना नहीं चाहते थे जिसके कारण महादेव हिमालय को छोड़कर वारणाशी पहुंचे, जब पांडव महादेव शिव के दर्शनों के लिए वाराणसी पहुंचे तो महादेव वारणासी से गुप्तकाशी चले गए।

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परन्तु पांडव भी अपने इरादे के पक्के थे उन्होंने भी ब्रह्महत्या के प्रकोप से स्वंय को मुक्त करने के लिए महादेव शिव के दर्शनों को पाने की ठान ली थी। और पांचों भाई शिव के दर्शनों को पाने के लिए वारणाशी से गुप्तकाशी आ गए।

Tungnath Temple in Uttarakhand - तुंगनाथ मन्दिर उत्तराखंड

कहा जाता है कि जब पांडवों को गुप्तकाशी आये देख महादेव गुप्तकाशी से केदारनाथ पहुंच गए और पांडव भी भगवान शिव का पीछा करते - करते केदारनाथ पहुंच गए और तब तक महादेव शिव ने बैल का रूप धारण कर लिया था लेकिन पांडवों को इस बात पर सन्देह हो गया।

           ऐसे में भीम ने अपना विशाल रूप धारण किया और अपने पैरों को दो पहाडों पर फैला दिया। ऐसे में अन्य गाय - बैल तो भीम के पैरों के नीचे से निकल गए परन्तु शंकर रूपी बैल भीम के पैरों के नीचे से नहीं गए।

तुंगनाथ मंदिर | TungNath Temple in Uttarakhand - तुंगनाथ मन्दिर उत्तराखंड
TungNath Temple in Uttarakhand - तुंगनाथ मन्दिर उत्तराखंड


           जब भीम ने शकंर रूपी बैल को पकड़ना चाहा तो वह शिव रुपी बैल धीरे - धीरे जमीन के अन्दर अन्तर्धान होने लगा परन्तु  भीम ने शंकर रूपी बैल का पैर पकड़ लिया । कहा जाता है कि पांडवों की शिव भक्ति के प्रति पूर्ण समर्पण और दृढ़ संकल्प को देख महादेव प्रसन्न हुए और उन्होंने पाँचों भाई पांडवों को दर्शन देकर उन्हें ब्रहमहत्या के प्रकोप से मुक्त कर दिया।

मान्यता है कि जब महादेव शिव बैल के रूप में अन्तर्ध्यान हुए तो उनके धड़ से ऊपर का भाग  काठमांडू  जो कि नेपाल की राजधानी से लगभग 5 किलोमीटर उत्तर -पूर्व में बागमती नदी के तट पर प्रकट हुआ।

अब वहाँ पशुपतिनाथ का भव्य मंदिर है, जो कि भगवान शिव को समर्पित एशिया के चार सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है। शिव की भुजायें तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मध्यमहेश्वर में और जटा  कल्पेश्वर में प्रकट  हुई और शंकर रूपी बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में केदारनाथ में पूजी जाती है। इसलिये इन चारों स्थानों सहित तुंगनाथ मंदिर को पंचकेदार कहा जाता है।

तुंगनाथ मंदिर की स्थापना 

एक कहानी के मुताबिक तुंगनाथ मंदिर की स्थापना कुंती पुत्र अर्जुन ने की थी जो कि पाँचों भाई पांडवों में से तीसरे नम्बर पे थे और इसका विवरण हिन्दू महाकाव्य महाभारत में भी है।

तुंगनाथ मंदिर इसलिए भी इतना फेमस है क्योंकि यह मंदिर मर्यादा पुरषोत्तम भगवान श्री राम से भी जुड़ा हुआ है- पुराणों में कहा गया है कि भगवान श्री राम महादेव शिव को अपना भगवान मानकर पूजते थे ।

मान्यता है कि जब प्रभु श्री राम ने लंकापति रावण का वध किया था तो वह स्वंय को ब्रह्महत्या का दोसी मानते थे और उन्होंने स्वयं को ब्रह्महत्या के श्राप से मुक्त करने के लिए तुंगनाथ मंदिर से डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक सुंदर स्थान पर महादेव शिव की आराधना की और उसी समय से यह स्थान चंद्रशिला के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

तुगनाथ मंदिर के पुजारी मक्कामाथ गाँव के स्थानीय ब्राह्मण है । सर्दीयों में सभी पंचकेदार बंद हो जाते हैं क्योंकि सर्दियों में यहाँ पूरा छेत्र बर्फ से ढका रहता है।
लोगों का मानना है कि माता पार्वती ने भोलेनाथ को पाने के लिए इसी पवित्र स्थान पर विवाह से पूर्व तपस्या की थी।

कैसे पहुँचे तुंगनाथ में बाबा के दर्शन करने
तुंगनाथ पहुँचने के लिए लिए आपके पास दो रास्ते हैं
1) ऋषिकेश से गोपेश्वर होते हुए फिर गोपेश्वर से चोपता के रास्ते आप तुंगनाथ पहुँच सकते हैं
2) ऋषिकेश से ऊखीमठ होते हुए चोपता होकर भी आप तुंगनाथ पहुँच सकते है इन दोनों रास्तों में दूसरा रास्ता काफी छोटा और संकरा है।

तुंगनाथ मंदिर की यात्रा कब करे

मई से नवम्बर तक यहाँ की यात्रा की जा सकती है। यूँ तो इस पवित्र स्थान में बाकी समय में भी यात्रा की जा सकती है परन्तु बर्फबारी होने की वजह से मोटर का सफर कम और ट्रैक ज्यादा होता है।
वैसे इस पवित्र स्थान का मजा आप जनवरी-फरवरी में भी ले सकते हैं, इस समय भी यह स्थान लोगों को काफी पसंद आता है क्योंकि इस दौरान यह स्थान पूरा बर्फ से ढक होता है।

मुझे उम्मीद है कि Tungnath Temple in Uttarakhand - तुंगनाथ मन्दिर उत्तराखंड के बारे में यह जानकारी आपको पसंद आयी होगी। यदि तुंगनाथ मंदिर के बारे में हमसे कोई जानकारी छूट गयी हो तो आप Comment में लिख सकते हैं इस वेबसाइट में आपको ऐसे ही और जानकारी देखने को मिलेगी । यदि आप किसी और चीज के बारे में जानना चाहते हैं तो COMMENT कीजिये हम जल्दी ही आपको वह जानकारी Provide करा देंगे।

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