Jaswant Singh Rawat - India Vs China War 1962 सुबह सूरज की पहली किरण आने पर चाय, 9 बजे नास्ता , शाम को
खाना भी दिया जाता है हर रोज जिनके जूतों पर पॉलिश की जाती है ,यहाँ तक कि
प्रतिदिन उनकी वर्दी पे प्रेस की जाती है, एवं हमारे देश के जवान
उन्हें शीश झुकाने के बाद ही आगे बढ़ते हैं।
ऐसा महान वीर भड़ योद्धा Jaswant Singh Rawat जिनकी प्रेरणा से आज भी भारतीय सैनिकों का सीना गर्व से फूल जाता है। India Vs China War में इस वीर ने चीनियों को ऐसा रोंदा की कई पीढियों तक वो इन्हें भूल नहीं पायेंगे।आज की इस पोस्ट में Jaswant Singh Rawat के बारे में जानेंगे की कैसे इस वीर योद्धा ने अकेले चीन के ३०० से अधिक सैनिकों को परास्त किया।
हमें भारत के ऐसे वीर सैनकों को कभी भूलना नहीं चाहिए और हम सभी का फर्ज बनता है कि Jaswant Singh Rawat के बारे में देश का बच्चा - बच्चा जानें इसके लिए आपको यह पोस्ट अधिक से अधिक Facebook, Whatsapp जैसे Social Media में शेयर करनी हैं।
उत्तराखंड की इस देवभूमि की कोख से कई वीरों ने जन्म लिया व कई वीरों ने अपनी मिट्टी, अपने देश के लिये अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया इन्हीं में एक हैं देवभूमी उत्तराखंड के एक महान वीर योद्धा जसवंत सिंह रावत जिन्होंने 1962 के भारत चीन युद्ध मे 72 घंटो तक अकेले चीन की सेना का सामना किया था और 300 से अधिक चीनी सैनिकों को मौत की घाट उतारा था ये गाथा है उस महान वीर की जिसके नाम से आज भी चीन कांप उठता है।
इनके पिताजी का नाम श्री गुमान सिंह जी रावत था बचपन से ही जसवंत सिंह रावत के मन में सेना के प्रति लगाव थाथ लेकिन किसे पता था कि यह बालक एक दिन इतिहास में अपना नाम अमर कर देगा।
यह बात उस समय की है जब 17 नवम्बर 1962 को अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर भारतीय सेना तैनात नहीं थी और इसी समय का फायदा उठाकर चीन ने अरुणाचल प्रदेश पर कब्जा करने के लिये हमला कर दिया चीनी सैनिक तवांग से आगे निकलते हुए अरुणाचल प्रदेश के नूरगांव पहुंच गए चीनी सेना को रोकने के लिए गढ़वाल राइफल की चौथी बटालियन को वहां पर भेज दिया गया।
जसवंत सिंह रावत जो कि इसी बटालियन के सिपाही थे गढ़वाल रायफल की चौथी बटालियन ने भी जमकर चीनी सैनिकों का मुकाबला किया परन्तु संसाधनों व अस्त्रों शास्त्रों की कमी होने की वजह सेना के सामने दिक्कतें बढ़ने लगे गयी हाई कमान से बात की गयी तो बटालियन को चौकी छोड़ने का आदेश दिया गया लेकिन गढ़वाल रायफल केतीन वीर योद्धाओं ने तो चीनी सेना के नाक में दम करने की ठान रखी थी ये तीन वीर योद्धा थे।
रायफल मैन जसवन्त सिंह रावत जी,त्रिलोक नेगी जी,और गोपाल गुसाईं जी ये तीनों वीर योद्धा सीमा पर ही तैनात रहे ,इन वीर योद्धाओं ने चीनी सैनिकों से जमकर मुकाबला करने की ठान ली थी। ये तीनों वीर जवानों ने चीनी सैनिकों का जमकर मुकाबला किया।
समय बीतता गया और वीर योद्धा जसवंत सिंह रावत के दोनों साथी वीरगति प्राप्त करते हुए शहीद हो गये।
अब जसवंत सिंह रावत जी अकेले पड़ गए और वह अकेले ही चीनी सैनिकों से मुकाबला कर रहे थे लेकिन वहां दो सगी बहनें थी जिन्होंने जसवंत सिंह का साथ दिया जिनका नाम था शेला व नूरा
अब ये तीनों जमकर चीनी जवानों से मुकाबला करने लगे।
जसवंत सिंह रावत जी ने नूरा और शैला की मदद से फायरिंग ग्राउंड बनाया ,तीन स्थानों पर मशीनगन और टैंक रखे, जिससे चीनी सैनिक भ्रमित हो गये और वह यह समझते रहें की भारतीय सेना बहुत बड़ी सख्यां में है और वह तीनों स्थानों से घमासान हमला कर रही हैं।
नूरा और शेला सहित जसवंत सिंह रावत तीनो जगहों से जमकर हमला कर रहे थे। इस तरह वः 72 घण्टे यानी तीन दिनों तक चीनी सैनिकों को चकमा देने में कामयाब रहे। लेकिन इसी बीच चीनी सैनिकों को किसी ने खबर दी कि जसवंत सिंह वहां पर अकेले हैपी पूरी भारतीय फौज वहां ओर नहीं है।
इसके बाद चीनी सैनिकों ने 17 नंवबर सन् 1962 को नूरा और शेला सहित जसवंत सिंह रावत पर चारों तरफ से हमला कर दिया।
इस जंग में नूरा व शेला ने भी अपने प्राण न्यौछावर कर दिये व इतिहास में सदा के लिये अमर हो गयी।
इन दो बड़ी शहादतों का देश के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना को देखकर इन्हें हमेशा अपने दिलों में अमर रखने के लिए आज भी नूरनाग में भारत की अंतिम सीमा पर दो पहाड़िया हैं जहाँ से भारतीय जवान लड़ाई लड़ रहे थे,ये दो पहाड़िया आज भी शेला और नूरा के नाम से प्रसिद्ध है।
इन दो वीर बहनों की सहायता के बिना जसवंत सिंह रावत कमजोर पड़ने लगे और उन्हें इस बात का अहसास होने लगा कि अब वो चीनी सैनिकोंद्वार पकड़ लिए जायेंगे इसलिए उन्होंने स्वयं को युद्धबंदी बनने से बचने के ल खुद को एक गोली मार ली।
क्या कारण है कि चीनी सैनिक आज भी इस नाम से प्रभावित होते हैं -
कहा जाता है कि जब बाबा जसवंत सिंह ने खुद को गोली मारी व शहीद हो गये तो चीनी सैनिकों ने इस अमर वीर के धड़ से उनका सिर अलग कर लिया और अपने पास ले गये, परन्तु कुछ समय बाद चीनी सैनिक जसवंत सिंह की साहसिक बहादुरी को देखकर इतने प्रभवित हो गये कि उन्होंने 20 नवम्बर सन् 1962 को युद्ध विराम की घोषणा कर दी और इसके बाद चीनी कमांडर ने न केवल राइफल मैन का सिर समान पूर्वक वापस लौटाया बल्कि कांश की बनी हुयी उनकी मूर्ति भी सम्मान स्वरूप भेंट की।
इनके नाम पर नूरनाग में जसवंत गढ़ का एक बड़ा स्मारक भी बनाया गया है, यहाँ उनका प्रत्येक सामान सभाल कर रखा गया है।
वीर जसंवत सिंह रावत भारतीय सेना के मात्र ऐसे सदस्य हैं जिनका स्वर्गवास होने पर भी उनके नाम के आगे स्वर्गीय नहीं लगाया जाता है और उन्हें आज भी प्रमोशन और छुटी मिलती रहती है- महावीर चक्र से समानित यह वीर राइफल मेन के पद से प्रमोशन पाकर मेजर जनरल बन गये हैं।
जसवंत सिंह रावत की और से उनके परिवार के सदस्य छुट्टी का आवेदन देते हैं और छुटी मिलने पर हमारे जवान सैनिक पुरे सैन्य सम्मान के साथ उनके चित्र को उनके गाँव तक ले जाते हैं तथा छुटी समाप्त होने पर उनके चित्र को सम्मान पूर्वक वापस जसवंत गढ़ ले जाया जाता है। मेजर जनरल को उनकी पूरी सैलरी भी दी जाती है।
लोगों का मानना है कि वह आज भी भारतीय सैनिकों का मार्गदर्शन करते हैं। अगर जब कोई सेनिक जवान ड्यूटी के दौरान सो जाता है तो वह उन्हें जगा देते हैं।इसीलिये मेजर जनरल के नाम के उनके गुजर जानें के बाद भी शहीद नहीं लगाया जाता क्योंकि उन्हें आज भी ड्यूटी पर तैनात माना जाता है।
आप जसवन्त सिंह रावत जी की इस वीडियो को भी देख सकते हैं।
ऐसा महान वीर भड़ योद्धा Jaswant Singh Rawat जिनकी प्रेरणा से आज भी भारतीय सैनिकों का सीना गर्व से फूल जाता है। India Vs China War में इस वीर ने चीनियों को ऐसा रोंदा की कई पीढियों तक वो इन्हें भूल नहीं पायेंगे।आज की इस पोस्ट में Jaswant Singh Rawat के बारे में जानेंगे की कैसे इस वीर योद्धा ने अकेले चीन के ३०० से अधिक सैनिकों को परास्त किया।
हमें भारत के ऐसे वीर सैनकों को कभी भूलना नहीं चाहिए और हम सभी का फर्ज बनता है कि Jaswant Singh Rawat के बारे में देश का बच्चा - बच्चा जानें इसके लिए आपको यह पोस्ट अधिक से अधिक Facebook, Whatsapp जैसे Social Media में शेयर करनी हैं।
Jaswant Singh Rawat
उत्तराखंड की इस देवभूमि की कोख से कई वीरों ने जन्म लिया व कई वीरों ने अपनी मिट्टी, अपने देश के लिये अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया इन्हीं में एक हैं देवभूमी उत्तराखंड के एक महान वीर योद्धा जसवंत सिंह रावत जिन्होंने 1962 के भारत चीन युद्ध मे 72 घंटो तक अकेले चीन की सेना का सामना किया था और 300 से अधिक चीनी सैनिकों को मौत की घाट उतारा था ये गाथा है उस महान वीर की जिसके नाम से आज भी चीन कांप उठता है।
जानिए इस वीर अमर शहीद की जन्म से मृत्य तक की अमर गाथा-
जीवन परिचय- राइफल मैन जसवंत सिंह रावत का जन्म 19 अगस्त 1941 को उत्तराखंड के पौड़ी जिले के ग्राम - बंड्यू, पट्टी- खारली , ब्लॉक- बीरोंखाल में हुआ था।इनके पिताजी का नाम श्री गुमान सिंह जी रावत था बचपन से ही जसवंत सिंह रावत के मन में सेना के प्रति लगाव थाथ लेकिन किसे पता था कि यह बालक एक दिन इतिहास में अपना नाम अमर कर देगा।
Jaswant Singh Rawat | India Vs China War |
1962 में भारत -चीन का महायुद्ध - Jaswant Singh Rawat | India Vs China War
यह बात उस समय की है जब 17 नवम्बर 1962 को अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर भारतीय सेना तैनात नहीं थी और इसी समय का फायदा उठाकर चीन ने अरुणाचल प्रदेश पर कब्जा करने के लिये हमला कर दिया चीनी सैनिक तवांग से आगे निकलते हुए अरुणाचल प्रदेश के नूरगांव पहुंच गए चीनी सेना को रोकने के लिए गढ़वाल राइफल की चौथी बटालियन को वहां पर भेज दिया गया।
जसवंत सिंह रावत जो कि इसी बटालियन के सिपाही थे गढ़वाल रायफल की चौथी बटालियन ने भी जमकर चीनी सैनिकों का मुकाबला किया परन्तु संसाधनों व अस्त्रों शास्त्रों की कमी होने की वजह सेना के सामने दिक्कतें बढ़ने लगे गयी हाई कमान से बात की गयी तो बटालियन को चौकी छोड़ने का आदेश दिया गया लेकिन गढ़वाल रायफल केतीन वीर योद्धाओं ने तो चीनी सेना के नाक में दम करने की ठान रखी थी ये तीन वीर योद्धा थे।
रायफल मैन जसवन्त सिंह रावत जी,त्रिलोक नेगी जी,और गोपाल गुसाईं जी ये तीनों वीर योद्धा सीमा पर ही तैनात रहे ,इन वीर योद्धाओं ने चीनी सैनिकों से जमकर मुकाबला करने की ठान ली थी। ये तीनों वीर जवानों ने चीनी सैनिकों का जमकर मुकाबला किया।
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समय बीतता गया और वीर योद्धा जसवंत सिंह रावत के दोनों साथी वीरगति प्राप्त करते हुए शहीद हो गये।
अब जसवंत सिंह रावत जी अकेले पड़ गए और वह अकेले ही चीनी सैनिकों से मुकाबला कर रहे थे लेकिन वहां दो सगी बहनें थी जिन्होंने जसवंत सिंह का साथ दिया जिनका नाम था शेला व नूरा
अब ये तीनों जमकर चीनी जवानों से मुकाबला करने लगे।
जसवंत सिंह रावत जी ने नूरा और शैला की मदद से फायरिंग ग्राउंड बनाया ,तीन स्थानों पर मशीनगन और टैंक रखे, जिससे चीनी सैनिक भ्रमित हो गये और वह यह समझते रहें की भारतीय सेना बहुत बड़ी सख्यां में है और वह तीनों स्थानों से घमासान हमला कर रही हैं।
नूरा और शेला सहित जसवंत सिंह रावत तीनो जगहों से जमकर हमला कर रहे थे। इस तरह वः 72 घण्टे यानी तीन दिनों तक चीनी सैनिकों को चकमा देने में कामयाब रहे। लेकिन इसी बीच चीनी सैनिकों को किसी ने खबर दी कि जसवंत सिंह वहां पर अकेले हैपी पूरी भारतीय फौज वहां ओर नहीं है।
इसके बाद चीनी सैनिकों ने 17 नंवबर सन् 1962 को नूरा और शेला सहित जसवंत सिंह रावत पर चारों तरफ से हमला कर दिया।
इस जंग में नूरा व शेला ने भी अपने प्राण न्यौछावर कर दिये व इतिहास में सदा के लिये अमर हो गयी।
Jaswant Singh Rawat In Hindi
इन दो बड़ी शहादतों का देश के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना को देखकर इन्हें हमेशा अपने दिलों में अमर रखने के लिए आज भी नूरनाग में भारत की अंतिम सीमा पर दो पहाड़िया हैं जहाँ से भारतीय जवान लड़ाई लड़ रहे थे,ये दो पहाड़िया आज भी शेला और नूरा के नाम से प्रसिद्ध है।
इन दो वीर बहनों की सहायता के बिना जसवंत सिंह रावत कमजोर पड़ने लगे और उन्हें इस बात का अहसास होने लगा कि अब वो चीनी सैनिकोंद्वार पकड़ लिए जायेंगे इसलिए उन्होंने स्वयं को युद्धबंदी बनने से बचने के ल खुद को एक गोली मार ली।
क्या कारण है कि चीनी सैनिक आज भी इस नाम से प्रभावित होते हैं -
कहा जाता है कि जब बाबा जसवंत सिंह ने खुद को गोली मारी व शहीद हो गये तो चीनी सैनिकों ने इस अमर वीर के धड़ से उनका सिर अलग कर लिया और अपने पास ले गये, परन्तु कुछ समय बाद चीनी सैनिक जसवंत सिंह की साहसिक बहादुरी को देखकर इतने प्रभवित हो गये कि उन्होंने 20 नवम्बर सन् 1962 को युद्ध विराम की घोषणा कर दी और इसके बाद चीनी कमांडर ने न केवल राइफल मैन का सिर समान पूर्वक वापस लौटाया बल्कि कांश की बनी हुयी उनकी मूर्ति भी सम्मान स्वरूप भेंट की।
वीर जसवंत सिंह के नाम का मंदिर - Jaswant Singh Rawat Story
मरणोपरान्त विजेता ने जिस जगह पर चीनी सेना के 300 जवानों को मौत के घाट उतारा था उस स्थान पर उनके नाम का एक भव्य मंदिर भी बनाया गया है तथा इस पवित्र मंदिर में चीनी कमांडर द्वारा सम्मान स्वरूप सोंपी गयी इस बहादुर की मूर्ति को भी स्थापित किया गया था।इनके नाम पर नूरनाग में जसवंत गढ़ का एक बड़ा स्मारक भी बनाया गया है, यहाँ उनका प्रत्येक सामान सभाल कर रखा गया है।
वीर जसंवत सिंह रावत भारतीय सेना के मात्र ऐसे सदस्य हैं जिनका स्वर्गवास होने पर भी उनके नाम के आगे स्वर्गीय नहीं लगाया जाता है और उन्हें आज भी प्रमोशन और छुटी मिलती रहती है- महावीर चक्र से समानित यह वीर राइफल मेन के पद से प्रमोशन पाकर मेजर जनरल बन गये हैं।
जसवंत सिंह रावत की और से उनके परिवार के सदस्य छुट्टी का आवेदन देते हैं और छुटी मिलने पर हमारे जवान सैनिक पुरे सैन्य सम्मान के साथ उनके चित्र को उनके गाँव तक ले जाते हैं तथा छुटी समाप्त होने पर उनके चित्र को सम्मान पूर्वक वापस जसवंत गढ़ ले जाया जाता है। मेजर जनरल को उनकी पूरी सैलरी भी दी जाती है।
क्या कारण है कि देश की खातिर शहीद हो चुके जसवंत सिंह के नाम के आगे शहीद नही लगाया जाता है- स्थानीय लोगों और सैनिक जवानों का मानना है कि मेजर जनरल की आत्मा आज भी चौकी की रक्षा करती है।
लोगों का मानना है कि वह आज भी भारतीय सैनिकों का मार्गदर्शन करते हैं। अगर जब कोई सेनिक जवान ड्यूटी के दौरान सो जाता है तो वह उन्हें जगा देते हैं।इसीलिये मेजर जनरल के नाम के उनके गुजर जानें के बाद भी शहीद नहीं लगाया जाता क्योंकि उन्हें आज भी ड्यूटी पर तैनात माना जाता है।
मुझे उम्मीद है कि Jaswant Singh Rawat | India Vs China War के बारे में यह जानकारी आपको पसंद आयी होगी।
इस वेबसाइट में आपको ऐसे ही और जानकारी देखने को मिलेगी । यदि आप किसी और
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आप जसवन्त सिंह रावत जी की इस वीडियो को भी देख सकते हैं।