Chandrabadni Mandir Uttarakhand- आज इस पोस्ट में आपको Chandrabadni Devi Temple के बारे मे सम्पूर्ण जानकारी मिलने वाली है, यदि आप चन्द्रबदनी मंदिर में घूमने का प्लान बना रहें हैं तो चन्द्रबदनी मंदिर टिहरी गढ़वाल के बारे में ये जानकारी आपको जरूर होनी चाहिए, Maa Chandrabadni Mandir के बारे में यह जानकारी आपकी यात्रा को और भी आनंदित कर देगी।
चंन्द्रबदनी मन्दिर उत्तराखंड के धार्मिक स्थल में से एक है यह देवी सती के 52 शक्तिपीठों में से एक पवित्र हिन्दू मंदिर है, जो उत्तराखंड राज्य के टिहरी जिले के, हिंडोलाखाल विकासखंड में, चंद्रकूट पर्वत पर समुद्रतल से लगभग 8000 फुट की ऊँचाई पर, देवप्रयाग - टिहरी मोटर मार्ग तथा श्रीनगर - टिहरी मोटर मार्ग के बीच में स्थित है।
माता सती का बदन यहाँ पर गिरा था इसी वजह से देवी की मूर्ति के कोई दर्शन नहीं कर सकता, यहाँ केवल श्रीयंत्र के ही दर्शन कर सकते हैं। इसी कारण मंदिर के पुजारी भी आँखों पर पट्टी बाँध कर माँ को स्नान कराते हैं।
लोक मान्यता के अनुसार एक बार किसी पुजारी ने अज्ञानवश अकेले मूर्ति देखने की चेष्टा की थी, इसके उपरांत पुजारी अँधा हो गया था तब से यहाँ पुजारी आँख में पट्टी बाँधकर ही मूर्ती के दर्शन तथा स्नान किया करते हैं।
Chandrabadni Mandir Uttarakhand - चन्द्रबदनी मंदिर टिहरी गढ़वाल
चंन्द्रबदनी मन्दिर उत्तराखंड के धार्मिक स्थल में से एक है यह देवी सती के 52 शक्तिपीठों में से एक पवित्र हिन्दू मंदिर है, जो उत्तराखंड राज्य के टिहरी जिले के, हिंडोलाखाल विकासखंड में, चंद्रकूट पर्वत पर समुद्रतल से लगभग 8000 फुट की ऊँचाई पर, देवप्रयाग - टिहरी मोटर मार्ग तथा श्रीनगर - टिहरी मोटर मार्ग के बीच में स्थित है।
इस मंदिर से सुरकंडा ,केदारनाथ ,बद्रीनाथ पर्वत की चोटी का दृश्य दिखाई देता है, जो इस स्थान को और भी अधिक मनमोहक और आकर्षक बनाता है।
मंदिर के गर्भगृह में एक शिला पर श्रीयंत्र बना हुआ है, जिसके ऊपर
चाँदी का एक बड़ा छत्र रखा गया है। जगत गुरु शंकराचार्य ने श्रीयंत्र से
प्रभावित होकर ही इस शिद्धपीठ की स्थापना की थी।
महाभारत कथा के अनुसार चन्द्रकूट पर्वत पर गुरु द्रोण पुत्र अश्वस्थामा को फेंका गया था , कहा जाता है कि चिरंजीवी अश्वस्थामा आज भी हिमालय में विचरते हैं।
चन्द्रबदनी मंदिर टिहरी गढ़वाल |
वैसे तो हर दिन दूर - दूर से श्रद्धालु यहाँ आते रहते हैं, परन्तु
नवरात्रों में यहाँ हजारों की संख्या में भीड़ उमड़ती है, नवरात्रों की
अष्टमी और नवमी के दिन नवदुर्गा के रूप में नों कन्याओं की यहाँ पूजा -
अर्चना की जाती है, इसी के साथ उन्हें दान - दक्षिणा दिया जाता है, वैसे
पूरे भारतवर्ष में कन्याओं को देवी का रूप ही मन जाता है।
अप्रैल
महीने में प्रत्येक वर्ष यहाँ एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है ,
जिसमें सभी भक्तगण माता के जयकारे लगाते हुये यहाँ पहुँचते है। मंदिर के
निकट यात्रियों की विश्राम और भोजन की पूरी व्यवस्था है।
मंदिर परिसर में माता की पूजा श्रीयंत्र के रूप में होती है। मान्यता
है कि जो भी भक्त यहाँ भक्तिभाव से मन्नतें माँगने आता है, माता उनकी
मन्नतें को पूर्ण करती है जिसके फलस्वरूप भक्तगण मन्नते पूर्ण हो जाने पर
कन्द, मूल , फल , अगरबत्ती , धूपबत्ती , चुनी , चाँदी के छतर आदि चढ़ा कर
माँ के नाम के रूप में समर्पित करते हैं।
चंद्रबदनी मंदिर से जुड़ी कुछ रहस्यमयी कहानियाँ
यह पोराणिक कहानी आदिशक्ति देवी सती से जुड़ी हुयी है, जब प्रजापति
राजा दक्ष ने कनखल जो कि आज हरिद्वार के नाम से प्रसिद्ध है, में एक भव्य
यज्ञ का आयोजन किया था जिसमे उन्होंने महादेव तथा उनकी अर्धागिनीं माता सती
के अलावा सभी देवी - देवताओं को आमंत्रित किया था।
सभी
देवी - देवताओं को यज्ञ स्थान को जाते देख, देवी सती भी भावुक हो गई और
उनके मन में भी पिता के घर जाने की तरंग जग उठी, उन्होंने भोलेनाथ से कहा
कि हमें भी वहाँ जाना चाहिए, तो भगवान शंकर ने यह कहकर मना कर दिया कि बिना
निमन्त्रण के वहाँ जाना हमारे लिए उचित नहीं होगा।
परन्तु देवी सती महादेव के मना करने पर भी स्वंय वहाँ चले गई जहाँ उनकी माता के सिवाय उनका स्वागत - सत्कार किसी ने नहीं किया, इसी के साथ वहाँ सभी देवतागणों का स्थान था लेकिन, शिव - सती का स्थान नहीं था।
जब देवी सती ने अपना तथा भोलेनाथ का स्थान न होने का कारण पूछा तो उनके पिता राजा दक्ष ने उन्हें तथा उनके पति भगवान शिव को अपमानजनक शब्द सुना डाले , माता सती अपने परमेश्वर का अपमान सह न पाई और वह क्रोधित होकर यज्ञ कुंड में कूद गई ।
देवी सती ने स्वयं की ऊर्जा से खुद को भस्म कर दिया , जब महादेव को देवी सती का भस्म होने का समाचार मिला तो उन्होंने रुद्र रूप धारण किया और वहाँ आकर उनके पिता दक्ष का सिर काट दिया तथा शोक करते हुये सती का जला शव त्रिशूल में उठाकर पूरे ब्रहमांड में ब्रह्ममण करने लगे उस समय पूरी सृष्टि में प्रलय जैसी स्थिति आ गयी थी।
परन्तु देवी सती महादेव के मना करने पर भी स्वंय वहाँ चले गई जहाँ उनकी माता के सिवाय उनका स्वागत - सत्कार किसी ने नहीं किया, इसी के साथ वहाँ सभी देवतागणों का स्थान था लेकिन, शिव - सती का स्थान नहीं था।
जब देवी सती ने अपना तथा भोलेनाथ का स्थान न होने का कारण पूछा तो उनके पिता राजा दक्ष ने उन्हें तथा उनके पति भगवान शिव को अपमानजनक शब्द सुना डाले , माता सती अपने परमेश्वर का अपमान सह न पाई और वह क्रोधित होकर यज्ञ कुंड में कूद गई ।
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देवी सती ने स्वयं की ऊर्जा से खुद को भस्म कर दिया , जब महादेव को देवी सती का भस्म होने का समाचार मिला तो उन्होंने रुद्र रूप धारण किया और वहाँ आकर उनके पिता दक्ष का सिर काट दिया तथा शोक करते हुये सती का जला शव त्रिशूल में उठाकर पूरे ब्रहमांड में ब्रह्ममण करने लगे उस समय पूरी सृष्टि में प्रलय जैसी स्थिति आ गयी थी।
सृष्टि का कल्याण करने के लिए सभी देवता सृष्टि पालक भगवान विष्णु
के पास गए वे महादेव को शांत करने का आग्रह किया इसी दौरान सचिदानंद ने
अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के जले हुए शव को 51 भागों में विभाजित कर
दिया ।
जहाँ - जहाँ देवी सती के
अंग गिरे वे स्थान सिद्धपीठ अथवा शक्तिपीठ कहलाये कहा जाता कि इस पवित्र
स्थान पर माँ का बदन (शरीर ) गिरा था इसीलिए यहाँ का नाम चन्द्रबदनी पड़ा।
एक कहानी यह भी कही जाती है कि इसी सुंदर स्थान पर एक समय भोलेनाथ माता सती के वियोग में व्याकुल होकर उन्होंने देवी सती का स्मरण किया, जिसके फलस्वरूप देवी सती ने भोलेनाथ को चन्द्र रूप शीतल मुख में दर्शन दिए थे, जिसके परिणामस्वरूप महादेव का दुख दूर हो गया था ।
एक कहानी यह भी कही जाती है कि इसी सुंदर स्थान पर एक समय भोलेनाथ माता सती के वियोग में व्याकुल होकर उन्होंने देवी सती का स्मरण किया, जिसके फलस्वरूप देवी सती ने भोलेनाथ को चन्द्र रूप शीतल मुख में दर्शन दिए थे, जिसके परिणामस्वरूप महादेव का दुख दूर हो गया था ।
यह मंदिर महाभारत से क्यों जुड़ा हुआ है
महाभारत कथा के अनुसार चन्द्रकूट पर्वत पर गुरु द्रोण पुत्र अश्वस्थामा को फेंका गया था , कहा जाता है कि चिरंजीवी अश्वस्थामा आज भी हिमालय में विचरते हैं।
क्या कारण है कि भक्त कभी भी मूर्ति के दर्शन नहीं कर सकते बल्कि सिर्फ श्रीयंत्र के ही दर्शन करते हैं -
माता सती का बदन यहाँ पर गिरा था इसी वजह से देवी की मूर्ति के कोई दर्शन नहीं कर सकता, यहाँ केवल श्रीयंत्र के ही दर्शन कर सकते हैं। इसी कारण मंदिर के पुजारी भी आँखों पर पट्टी बाँध कर माँ को स्नान कराते हैं।
लोक मान्यता के अनुसार एक बार किसी पुजारी ने अज्ञानवश अकेले मूर्ति देखने की चेष्टा की थी, इसके उपरांत पुजारी अँधा हो गया था तब से यहाँ पुजारी आँख में पट्टी बाँधकर ही मूर्ती के दर्शन तथा स्नान किया करते हैं।
पूजा में प्रयुक्त शंख का पानी पीने का यहाँ बड़ा महत्व माना गया है श्रर्द्धालुओं का मानना है कि यहाँ आने से आत्मशांति मिलती है।
यह भी
मान्यता है कि चंद्रकुट पर्वत पर रात में गंधर्व, अप्सरायें आज भी माँ के
दरबार मे नृत्य करती है इसी के साथ यहाँ रात में गंधर्व गीत भी गाते हैं।
स्कंद पुराण, देवी भागवत एवं महाभारत में इस शक्तिपीठ का उल्लेख मिलता है। प्राचीन ग्रन्थों में यहाँ का वर्णन भुवनेश्वरी सिद्धपीठ नाम से है।
चंद्रबदनी देवी मंदिर आने का उचित समय -
वैसे तो इस पवित्र स्थान पर आप किसी भी मौसम में आ सकते हैं परंतु सबसे अच्छा समय यहाँ आने के लिये जून से अक्टूबर का है।
मुझे उम्मीद है कि Chandrabadni Mandir Uttarakhand - चन्द्रबदनी मंदिर टिहरी गढ़वाल के बारे में यह जानकारी आपको पसंद आयी होगी। इस वेबसाइट में आपको ऐसे ही और जानकारी देखने को मिलेगी । यदि आप किसी और चीज के बारे में जानना चाहते हैं तो COMMENT कीजिये हम जल्दी ही आपको वह जानकारी Provide करा देंगे।
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